मीराबाई की जीवनी: मायके नागोरे की रानी
संक्षेप में मीराबाई:
मीराबाई, आदिकालीन हिंदी साहित्य की गर्व गाथाओं में से एक हैं। श्रीकृष्ण भक्ति के सबसे प्रमुख समर्थकों में से एक रही हैं। मीराबाई की अनुपम कविताओं और भक्ति संगीत के माध्यम से वे अपनी आत्मा की माया में जो जन्म-मृत्यु के चक्र में रसती है, से मुक्त करने का प्रयास करती रही हैं।
मीराबाई का जीवन:
मीराबाई का जन्म सन् 1498 में राजपूताना के मरवाड़ राज्य के बीकानेर शहर में हुआ। उनके माता-पिता, रतन सिंह और जीजाबाई, बताया जाता है कि साम्राज्य के ग्यारहवें निचले श्रेणी के राजकुमार के रूप में जन्मी थीं। वे अपने माता-पिता के इकलौते संतान थे और बचपन से ही अद्वितीय थीं।
बचपन की खेल-खेल में भगवान से मीराबाई की मुलाकात:
मीराबाई की बचपन से ही वैष्णव संप्रदाय की प्रभावशाली शक्ति उनके अंतरात्मा को गुड़गांव छलाने लगी। एक बार, जब मीराबाई नदी किनारे खेल रही थीं, तभी भगवान श्रीकृष्ण उनके पास आए और मीराबाई को छल लकड़ी में स्वरूप लिया। यह घटना उनकी भक्ति और साधना के लिए पहली कठिनाइयों में से एक बन गई।
मीराबाई के हृदय के नगर में:
मीराबाई की भक्ति और साधना:
मीराबाई के हृदय के नगर में, भगवान श्रीकृष्ण के ही दिव्य नामों का वास था। विशेष रूप से, मीराबाई श्रीकृष्ण की गोपियों में विश्वास रखती थीं और उनके लिए उनके पति राणा भोजराज से भी अधिक प्रेम और आस्था थी।
मीराबाई की संस्कृति और योगदान:
मीराबाई की कविताएँ और भजन संग्रह उनकी संस्कृति और भाषा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहे हैं। उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य में अमूल्य सम्पदा हैं और न सिर्फ भक्ति का प्रतीक हैं, बल्कि उनकी कविताएँ आज भी आपार प्रभाव डालती हैं।
- मीराबाई की प्रमुख कविताएँ:
- 1. वो मुकंद मीत।
- 2. एक मैं आनद साधी
- 3. घनश्याम तेरे रंग में रंगी तारी कोई बात न ंहीं।
मीराबाई का उद्दंड काल:
मीराबाई के वायरल भजन और कविताओं के बावजूद, राणा भोजराज और उनकी सास रानी ने अपनी शासकीय शक्ति का उपयोग करके उनके प्रति नाराजगी जताई। इसके परिणामस्वरूप, मीराबाई ने राजमहल छोड़ दिया और वैष्णव संप्रदाय में पूरी तरह से लीन हो गईं।
मीराबाई की विचारधारा:
मीराबाई भक्ति और मार्गदर्शन का स्त्रोत बनी रही हैं। उन्होंने अपनी संगीत-योग साधना के माध्यम से महान रूपांतरण के लिए एक नई मार्ग प्रशस्त की। आज भी, उनके कविताएं और गीत अद्वितीयता का प्रतीक हैं, जिनका असर लोगों के मनोविज्ञान पर रहता है।
साहित्यिक मीराबाई:
मीराबाई के साहित्यिक योगदान पर्यावरणीय आक्रमण के बावजूद हमारे समय को प्रभावित करते रहेंगे। उनकी भक्ति और प्रेम की लीला संकल्पना के माध्यम से सुनिश्चित करेगी कि मीराबाई का नाम सदैव साहित्य की उच्चतम चरम में रहेगा। जबकि भगवान श्रीकृष्ण का दिव्य अस्तित्व और उनके संगी कवियों ने उन्हें समृद्ध किया है, लेकिन मीरा का संघर्ष और व्यक्तित्व उन्हें अद्वितीय बनाते हैं।
मीराबाई के प्रिय भजन:
- 1. पायोजी मैंने राम रतन धन पायो।
- 2. अन्धारी रैन दीना चाड़ी दिन का उजाला।
- 3. मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो ना कोई।
परिणाम:
मीराबाई, हिंदी साहित्य की विशेष प्रतिष्ठा में सर्वश्रेष्ठ संत के रूप में मान्यता प्राप्त करने जैसी सम्प्रदायिक कोई सीमा नहीं है। अपनी कविताएँ और भजन, उनकी भक्ति, प्रेम और संगठन नंहीं, लेकिन मीराबाई के नाम, काम विश्वास की मान्यताओं के कारण उन्हें उच्चतम मन्ने जाताज हैं।
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